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स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती पर युवा दिवस विशेष

प्रदीप कुमार
श्रीनगरगढ़वाल।अखिलेश चन्द्र चमोला नशा उन्मूलन नोडल अधिकारी शिक्षा विभाग,गढ़वाल मण्डल उत्तराखंड जब मानवता सही पथ भटकने लगती है तब इस धरा पर किसी न किसी दिव्य महाविभूति का अवतरण अवश्य होता है। स्वामी विवेकानन्द भी इसी तरह के दिव्य महापुरुष थे। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन युवाओं के मार्ग दर्शन के लिए समर्पित किया। युवाओं को हमेशा यही सन्देश देते रहे उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये। इस प्रकार स्वामी विवेकान्द के विचार युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा दायिनी रहे। इस कारण 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयन्ती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा 1984 से इसे युवा दिवस के रूप में मनाने की मान्यता दी गई स्वामी विवेकानंद हमेशा युवाओं के लिए बेहतर सपना देखा करते थे।उनकी सोच थी कि-युवा देश के भविष्य हैं। आगे चलकर देश का भार इन्होंने ही संभालना है।स्वामी विवेकानन्द का अवतरण 12 जनवरी 1863 को कल कत्ता में हुआ। बचपन में इनके माता पिता इन्हें नरेन्द्रनाथ कहकर पुकारते थे। पिता का नाम विश्व नाथ और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। बचपन से ही नरेन्द्र नाथ कुशाग्र बुद्धि के थे। कठिन से कठिन विषय का एक बार अवलोकन करने पर सम्पूर्ण छवि इनके मनस पटल पर अंकित हो जाती थी। इनके पिताजी वकील थे। बचपन से ही पढ़ाई में रूचि थी। 1879 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। विद्यार्थी जीवन से ही सत्य की खोज में प्रयास रत रहे। कई बार अपनी माँ से भी ईश्वरीय सत्ता के सन्दर्भ में प्रश्न किया करते थे। अंत में 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली माता के पुजारी स्वामी रामकृष्ण से इनकी भेंट हुई। स्वामी रामकृष्ण से इहाँने कई तरह के प्रश्न पूछे। एक सवाल में इन्होंने कहा कि आपने भगवान को देखा है तब रामकृष्ण परम हंश ने कहा हॉ मैंने देखा है मैं भगवान को उसी तरह से देखता हूँ जैसे तुम्हे देख रहा हूं। फिर रामकृष्ण परमहंसने इनका साक्षाकार माँ काली से किया। साक्षात्कार होने के बाद इनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ गया।फिर स्वामी विवेकानन्द ने समाज में फैली कुरीतियाँ तथा भूखमरी को दूर करने का प्रयास किया।18 86 में रामकृष्ण परमहंश के निधन के बाद 1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन में अपना भाषण अमेरिका के भाइयों और बहनों के सम्बोधन से शुरू किया। उस दिन विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति का परछम पूरी दुनिया में लहराया। पूरे विश्व में नई पहचान मिली। इनके भाषण से आर्ट ऑफ शिकागो का पाण्डाल तालियोंसे गूंजता रहा। ये युवाओँ से हमेशा संवाद करते हुए कहते थे-हे युवाओ क्यों परेशान हो रहे हो। ब्रह्माण्ड की सारी शक्ति तुम्हीं में निहित है।अपने ऐश्वर्य मय स्वरूप को विकसित करो तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीछे हैं।अपना काम करते जाओ। किसी को जावाब देने की आवश्यकता नहीं है। धीरे धीरे सब होगा वीरता उत्साह से आगे बढ़ो उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो।’स्वामी विवेकानंद समय-समय पर युवाओं को नशे से दूर रहने के लिए भी प्रेरित करते रहते थे।उनका मानना था कि नशा करने से पूरा भविष्य बर्बाद हो जाता है। छात्रों को उनकी सलाह रहती थी कि वे आम जनमानस के बीच जा कर के नशा खोरी के खिलाफ सन्देश फैलाने का कार्य करें। स्वामी विवेकानन्द ने एक मई 1897 में कलकत्ता में अपने गुरु रामकृष्ण मिशन और 9 दिसम्बर 189 8 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस प्रकार युवाओं के प्रेरणा स्रोत अद्भुत प्रतिभा का धनी का चार जुलाई 1902 को ध्यान करते हुए पंच तत्व में विलीनहो गये। मात्र 39 वर्ष तक इस धरती पर रहकर नया कीर्तिमान स्थापित किया।इनके आध्यात्मिक कार्य और युवाओं को दी गई प्रेरणा युग युगों तक युवाओं का मार्गदर्शन करती रहेगी। प्रेरणा दायिनी व्यक्तित्व के रूप में स्वामी विवेकानंद का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा।

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