पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में समलौण संस्था का महत्वपूर्ण योगदान
प्रदीप कुमार नगर गढ़वाल। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही राठ क्षेत्र की समलौण संस्था के माध्यम से पूरे उत्तराखंड विभिन्न प्रजाति के पौधों का रोपण कर संरक्षण का संकल्प लिया। संस्था के संस्थापक बीरेंद्र दत्त गोदियाल ने बताया कि मैं पर्यावरण के प्रति जागरूक अपने स्वर्गीय पिता दाताराम गोदियाल सेवानिवृत्त वन क्षेत्राधिकारी एवं पूज्य गुरु मैती आन्दोलन के प्रणेता पद्मश्री कल्याण सिंह रावत से प्रेरित होकर अपनी जन्म भूमि एवं कर्मभूमि जनता जूनियर हाईस्कूल पाटुली से 15 जुलाई 2000 से छात्र छात्राओं के जन्मदिवस से समलौण पौधारोपण का कार्य शुरू किया तथा छात्र छात्राओं के सहयोग से विद्यालय में ही समलौण नर्सरी की स्थापना कर समलौण वन बन सके,आज समलौण वन में 500 से अधिक विभिन्न प्रजातियों आम,अमरूद,नींबू,मौसमी,तेजपात,बोतलब्रुश बांज,जामुन,सुराही,देवदार आदि के पौधे एवं वृक्ष है॑,महापुरुषों के नाम पर समलौण पौधारोपण किया जाता है,इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 2010 में मैंने समलौण पश्चिमी नयार घाटी पर्यावरण संरक्षण समिति का गठन किया,जिससे द्वारा छात्र छात्राओं के शैक्षिक उत्थान एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक के लिए जगह जगह शैक्षणिक संस्थानों में प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर तक वाल युवा सम्मेलन का कार्यक्रम किया जाता है,जिसमें विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। सफल प्रतिभागियों को पुरस्कार स्वरूप भेंट किए जाते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में ग्रामीण स्तर पर समलौण आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए जीस प्रकार से देश की सेवा के लिए जल,थल एवं वायुसेनाऐ॑ कार्य करती हैं,ठीक उसी प्रकार से गांव के पर्यावरण को बचाने के लिए गांव की महिलाओं का संगठन बनाकर समलौण सेना का गठन किया जाता है,जिसका नेतृत्व सेना नायिका करती है और एक महिला को उस सेना का कोषाध्यक्ष बनाया जाता है,बाकी सारे गांव की महिलाएं उस सेना की सदस्य होती हैं,सेना के द्वारा संयुक्त खाता सेना नायिका एवं कोषाध्यक्ष के नाम से संचालित होता है,जब भी किसी परिवार में कोई संस्कार रूपी कार्यक्रम होता है,समलौण सेना स्वयं के साधन से एक पौधा उस संस्कार के उपलक्ष में रोपित करवाती है,और उस समलौण पौध की संरक्षण की जिम्मेदारी उस परिवार को दिया जाता है। वह परिवार उस सेना को पुरस्कार स्वरूप कुछ धनराशि भेंट करता है,जो कि सेना की एक आय बन जाती है,इसी प्रकार जब गांव में हर संस्कारों के उपलक्ष में समलौण पौधारोपण का कार्य से प्राप्त पुरस्कार राशि संयुक्त खाता में जमा होती है,वह राशि गांव की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है,जिससे पर्यावरण,शिक्षा स्वास्थ्य,पंचायती सामान एवं स्वरोजगार आदि के साधन अपनाऐ जा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ संस्कारों में रोपित पौधों पर भावनात्मक लगाव से पर्यावरण संरक्षण में वृद्धि होती है। इसके साथ साथ हमारी लुप्त हो संस्कृति के संरक्षण एवं पर्यावरण के प्रति जागरूक के लिए वर्ष 2016 से प्रति वर्ष माह जनवरी में राठ महोत्सव का आयोजन थडिया चौ॑फला लौकनृत्य प्रतियोगिता के रूप में किया जाता है। और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले मनीषियों को समलौण सम्मान से सम्मानित भी किया जाता है। 30 जुलाई 2010 को राठ क्षेत्र की आराध्य देवी मां बूंखाल कांलिका मे बलि प्रथा को बंद करने प्रख्यात पशु प्रेमी संगठन की अध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सांसद मेनका गांधी राजकीय इंटर कालेज चौरीखांल में एक सेमिनार में पहुंची,उन निरीह पशुओं की आत्मा की शान्ति के लिए मैंने तत्कालीन जिलाधिकारी दिलीप जावलकर के मार्गदर्शन में पशु प्रेमी मेनका गांधी के हाथों एक बांज का समलौण पौधा मैंने लगवाया,जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी विद्यालय के प्रधानाचार्य को दी गई,मै भी उस विद्यालय का छात्र होने के कारण उस पौधे को देखने आता रहता,वह दिन प्रतिदिन पल्लवित पोषित होकर एक दिन वृक्ष बन गया,मेरे मन में एक ख्याल आया कि जिस प्रकार से हम अपने और अपने बच्चों कि जन्मदिवस बड़े धूमधाम से मनाते हैं,क्यों ना हम वृक्षों का भी जन्मोत्सव मनाएं,इसी परिप्रेक्ष्य में 30 जुलाई 2020 को उस वृक्ष की दसवीं वर्षगांठ पर वृक्ष जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया,साथ ही हर वर्ष 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस एक संकल्प के रूप में वृहद वृक्षारोपण कार्य के रूप में मनाया जाता है,साथ ही सरकार से मांग है कि 30 जुलाई को वृक्ष संरक्षण दिवस घोषित हो। समलौण आज एक जन आंदोलन बन चुका है। इसमें ब्लाक,जिला एवं राज्य संयोजिका एवं संयोजकों के माध्यम से प्रचार प्रसार का कार्य किया जाता है। आज हर संस्कारों के उपलक्ष में कुल रोपित पौधों की अनुमानित एक लाख से अधिक वृक्षारोपण हो चुका है उत्तराखंड के अलावा देश के कई राज्यों में जो आंदोलन चल रहा है।
