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महाशिवरात्रि: कल्याणकारी मार्ग का प्रशस्तीकरण

प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल।हमारी भारतीय संस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है कि यहां प्रत्येक महीने में किसी न किसी पर्व को मनाने का विवरण देखने को मिलता है।इसी अनूठी विशेषता के कारण हमारे देश को त्योहारों का देश कहा जाता है।यहां मुख्य रूप से वैशाखी,नवरात्रि,दशहरा,दीपावली,मकर संक्रांति,आदि त्योहारों की अद्भुत छटा देखने को मिलती है।इन त्योहारों में महाशिवरात्रि का पर्व अपने आप में कल्याण कारी मार्ग प्रशस्त करता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। वैसे तो सामान्य रूप से प्रत्येक मास में शिव रात्रि आती है,लेकिन यह पर्व महाशिवरात्रि के रूप में उद्घाटित होने के कारण उसका महत्व बढ़ जाता है। शिव भगवान को कल्याण कारी,मंगलकारी,महादेव,शंकर आदि अनेकों नाम से जाना जाता है।शिव भगवान की आराधना करने से कल्याण कारी भावना का प्रकटीकरण होता है।शिव में शि ध्वनि का अर्थ ऊर्जा का प्रतीक है।दूसरा वह शब्द है जिसका अर्थ नाम से लिया जाता है।जो प्रवीणता के भाव को उजागर करता है।इस प्रकार शिव नाम में एक ऊर्जा देता है।दूसरा उसे नियंत्रित करता है। विद्येश्वर संहिता में शिव भगवान की महिमा का गुणगान इस प्रकार से किया गया है,वे धन्य हैं और कृतार्थ हैं,उन्हीं का शरीर धारण करना भी सफल है,और उन्होंने ही अपने कुल का उद्धार कर लिया है,जो निरंतर शिव भगवान की पूजा अर्चना करते रहते हैं।शिव का नाम विभूति है,भस्म तथा रुद्राक्ष ये तीनों त्रिवेणी के समान परम पुण्य काल वाले माने गए हैं। भगवान शिव का नाम गंगा है। विभूति यमुना मानी गई है। रूद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है।इन तीनों की संयुक्त त्रिवेणी सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली है। सम्पूर्ण वेदों का अवलोकन करके महर्षियों ने यह निश्चित किया कि भगवान शिव का नाम जप संसार सागर से पार करने का सबसे अच्छा उपाय है।ज्योतिषीय विश्लेषण कै आधार पर इस वर्ष यह पुनीत त्योहार 26फरवरी को सुबह 11बजकर 54मिनट से शुरू होकर 27फरवरी के दिन 8 बजकर 54 मिनट पर समाप्त हो रहा है।महाशिवरात्रि में रात्रि के प्रहर का विशेष महत्व माना जाता है। इस स्थिति के आधार पर महा शिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी को ही महा शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा। इस पुनीत पर्व पर त्रिग्रही योग,सूर्य,चन्द्रमा ओर शनि का परस्पर संयोग,शिव योग,अमृत सिद्ध योग आदि बन रहे हैं,जो कि अपने आप में परम शुभता को दर्शाते हैं।शिवरात्रि के विषय में यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर रुद्र के रूप में प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से अवतरित हुए।शिव भगवान का तीसरा नेत्र प्रलय कारी माना जाता है। इस स्थिति में तांडव करते हुए सृष्टि का विनाश करते हैं। इस दिन शिव शक्ति का भी परस्पर मिलन माना जाता है। अर्थात माता पार्वती और शिव का विवाह हुआ। भगवान शिव भी इस रात्रि से विशेष स्नेह करते हैं।ईशान संहिता में कहा गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभा वाले लिंग से प्रकट हुए।ज्योतिष शास्त्र के आधार पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है।वही समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रुपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। इस पर्व पर शिव की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।शिव भगवान को निर्गुण निराकार परम तत्व के रूप में जाना जाता है।यही परम निर्गुण स्वरुप शिवरात्रि के दिन सगुण साकार के रूप में अवतरित हो जाता है।यही अवतरण की रात्रि महाशिवरात्रि कहलाती है। इस दिन के विषय में शास्त्रों में कई आख्यान देखने को मिलते हैं।इस दिन शिव पार्वती का विवाह हुआ था। शिवजी ने इसी दिन कालकूट नामक विष पीकर राक्षसों को समुद्र मंथन में निकले हुए अमृत से दूर रखकर देवताओं को अभय प्रदान किया। शिव भगवान में कल्याण का भाव समाया हुआ रहता है।महाशिवरात्रि का रात्रि में मनाने का कारण यह भी है रात्रि को तमोगुण का प्रतीक माना जाता है।शिव शक्ति का यह स्वरूप है कि जिसके सामने कोई भी वस्तु नहीं टिक सकती।यह रात्रि मनुष्य के अन्दर की सम्पूर्ण तामसिक वृत्तियों को समाप्त कर देती हैं।

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