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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उत्तराखंड में संस्कृत ग्राम बनाने की अभिनव पहल

प्रदीप कुमार
देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल।केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने उत्तराखंड में संस्कृत को आम जन तक पहुंचाने के लिए अभिनव पहल की है। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के साथ विश्वविद्यालय की इस योजना के तहत राज्य के एक जिले से एक गांव का चयन कर उसे संस्कृत ग्राम बनाया जा रहा है। इन तेरह गांवों के लिए एक-एक संस्कृत अध्यापक नियुक्त किया जाएगा। यदि यह परियोजना सफल रही तो इसका विस्तार किया जाएगा। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी का कार्य करता है।लगभग 55 वर्षों से विश्वविद्यालय (पूर्व में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान) यह कार्य करता आ रहा है। विभिन्न राज्यों में इस विश्वविद्यालय के 12 परिसर हैं तथा 27 आदर्श संस्कृत महाविद्यालयों को इस विवि से अनुदान मिलता है।विश्वविद्यालय का उद्देश्य शास्त्रों के संरक्षण के अतिरिक्ति संस्कृत भाषा को देश के सभी वर्गों के मध्य ले जाना है। इसी लक्ष्य के तहत संस्कृत ग्राम बनाने का निर्णय लिया गया है।

उत्तराखंड के 13 जिलों में फिलहाल एक-एक गांव का चयन किया गया है। इनमें नूरपुर पंजनहेड़ी (बहादराबाद, हरिद्वार),भोगपुर (डोईवाला),कोटगांव (मोरी,उत्तरकाशी),डिम्मर (कर्णप्रयाग,चमोली),गोदा (खिर्सू,पौड़ी गढ़वाल),बैंजी(अगस्त्यमुनि,रुद्रप्रयाग),मुखेम (प्रतापनगर,टिहरी गढ़वाल),पाण्डे गांव (कोटाबाग,नैनीताल),जैती (ताड़ीखेत,अल्मोड़ा),खर्ककार्की (चंपावत),शेरी (बागेश्वर),उर्ग (मूनाकोट,पिथौरागढ़) तथा नगला तराई (खटीमा,ऊधमसिंहनगर) शामिल हैं। उत्तराखंड के धार्मिक-आध्यात्मिक महत्त्व को देखते हुए विवि ने राज्य की संस्कृत अकादमी के साथ संस्कृत के विस्तार की पहल इस राज्य से की है। डॉ.सूर्यमणि भंडारी को इसका नोडल अधिकारी बनाया गया है।इस संबंध में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीनिवास कहते हैं कि उत्तराखंड राज्य देवभूमि है। अनेक ऋषि-मुनियों ने यहां तप किये हैं और यहां संस्कृत के महानग्रंथों की रचना की गयी है। संस्कृत इस राज्य की द्वितीय राजभाषा है। विभिन्न तीर्थों की इस देवभूमि में देवभाषा संस्कृत के प्रचार-प्रसार की नितांत आवश्यकता है। संस्कृत के वर्चस्व के कारण यहां एक नई संस्कृति का अभ्युदय होगा।संस्कृत ग्राम योजना इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्मित की गयी है। धीरे-धीरे इसका विस्तार किया जाएगा। संस्कृतग्रामों में लोगों को पहले दैनिक बोल-चाल और व्यवहार लायक संस्कृत सिखायी जाएगी। कुलपति प्रो.वरखेड़ी के अनुसार संस्कृत के प्रति लोगों के मन में भय है कि यह कठिन भाषा है,जबकि सच यह है कि यह भाषा हिंदी के बहुत निकट है और कुछ ही दिनों के अभ्यास से इसमें आसानी से व्यवहार किया जा सकता है।ग्रामीणों को सरल संस्कृत सिखायी जाएगी।दूसरी ओर,केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग के निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने बताया कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तराखंड में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के साथ मिलकर काम करने जा रहा है। दोनों केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के बीच विभिन्न मुद्दों पर एमओयू किया जा रहा है। दोनों उच्च शिक्षण संस्थानों की इस पहल का लाभ संस्कृत के संरक्षण और व्यापक प्रचार-प्रसार के रूप में सामने आयेगा। प्रो.सुब्रह्मण्यम ने बताया कि संस्कृत के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होने से विद्यार्थियों का झुकाव इस ओर हुआ है। सदियों से संस्कृत के लिए उर्वरा रही इस भूमि में पुनःसंस्कृत का झंडा बुलंद होने जा रहा है। निदेशक प्रो.सुब्रह्मण्यम के अनुसार इस योजना पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तराखंड संस्कृत अकादमी साथ काम कर रहे हैं। इसमें राज्य के संस्कृत शिक्षा विभाग की अहम भूमिका है। यह केंद्रीय संस्कृत विवि का राज्य सरकार के साथ मिलकर संस्कृत शिक्षा को और समृद्ध करने का प्रयास है। यह उत्तराखंड के संस्कृत शिक्षा सचिव दीपक गैरोला के अथक प्रयास का परिणाम है।

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