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एनआईटी उत्तराखंड के शोधकर्ताओं ने विकसित किया बायोमास आधारित घरेलू कुकिंग स्टोव एलपीजी पर निर्भरता होगी कम

प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल।आज श्रीनगर एनआईटी उत्तराखंड के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोध कर्ताओं द्वारा “डेवलपमेंट ऑफ़ डोमेस्टिक बायोमास कुकिंग स्टोव बेस्ड ऑन गैसीफिकेशन प्रोसेस यूजिंग पोरस रेडियंट बर्नर’ परियोजना के तहत एक घरेलू कुकिंग स्टोव के मॉडल का विकास किया गया है। इस परियोजना के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ.नीरज कुमार मिश्रा ने जानकारी दी कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड(डीएसटी) द्वारा कोर रिसर्च ग्रांट योजना द्वारा वर्ष 2022 में तीन वर्षों की अवधि के लिए प्रदान किया गया था जो कि मार्च 2025 में पूरा होने जा जा रहा है। डॉ मिश्रा ने बताया कि बायोमास ईंधन के प्रयोग पर आधारित कुकिंग स्टोव के मॉडल को ग्रामीण क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। इसके प्रयोग से खाना पकाने के लिए तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) पर निर्भरता,जो कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्लभ और महंगी बनी हुई,कम होगी। उत्तराखंड के जंगलों को अक्सर अनियंत्रित वनाग्नि की चुनौती का सामना करना पड़ता है,जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण बायोमास अपशिष्ट होता है। यह परियोजना घरेलू खाना पकाने के उद्देश्यों के लिए ऐसे कचरे का उपयोग करके एक स्थायी समाधान प्रदान करती है।साथ ही बायोमास को स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तित करके एलपीजी पर निर्भरता को कम करने में भी मददगार साबित होगी। इस परियोजना के तहत दो अलग-अलग बायोमास कुक स्टोव मॉडल विकसित किए गए हैं। इन स्टोव को उत्सर्जन को कम करते हुए थर्मल दक्षता को अधिकतम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है,जिससे खाना पकाने के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित किया जा सके। यह परियोजना पहाड़ी समुदायों में स्थायी ऊर्जा समाधान और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के अनुरूप है। चूंकि यह परियोजना मार्च 2025 में पूरी होने वाली है,इसलिए उम्मीद है कि यह लागत प्रभावी,खाना पकाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल एक कुशल विकल्प प्रदान करके ग्रामीण लोगों को पर्याप्त लाभ पहुंचाएगी। संस्थान के माननीय प्रभारी निदेशक प्रोफेसर के के शुक्ल ने उनकी इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा कि ऐसे नवाचार वन अग्नि प्रबंधन और ग्रामीण ऊर्जा आवश्यकताओं जैसे मुद्दों को हल करने के साथ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

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