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उत्तराखंड की दैवीय शक्तियों और कुलदेवताओं की परंपरा पर ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी की विशेष जानकारी

प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल।प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वज अपनी कुलदेवी/कुलदेवता की पूजा करते आए हैं,ताकि उनके घर-परिवार और कुल का कल्याण होता रहे,कुल देवी या देवता आध्यात्मिक,पारलौकिक या नकारात्मक शक्तियों से अपने कुलों की रक्षा करते हैं,जिससे नकारात्मक शक्तियों और ऊर्जाओं का खात्मा होता है,और कुल में सुख समृद्धि होती है,आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी कुलदेवताओं के विषय में तथा उत्तराखंड में दैवीय शक्ति के विषय में जानकारी दे रहे हैं..देवभूमि हमेशा से ही अपार दैवीय ऊर्जा और चमत्कारों का केन्द्र रहा है,इस आध्यात्मिक शक्ति पुंज को जानने और समझने के लिए हमें प्राचीन काल के इतिहास को अवश्य जानना होगा। हमारी देव भूमि से बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों व देवों का नाम जुड़ा हुआ है। जहां एक ओर सप्तश्रृषियों में महान तपस्वी अगस्त ऋषि व मार्कण्डेय ऋषि द्वारा देवभूमि उत्तराखंड को तपस्थली चुना वही दूसरी ओर मां पार्वती की जन्मभूमि उत्तराखंड होने के कारण देवाधिदेव महादेव का ससुराल भी उत्तराखंड ही है। उत्तराखंड में महादेव कहीं केदारनाथ,कहीं बागनाथ,कहीं जागनाथ,कहीं तुंगनाथ तो कहीं अलखनाथ नाम से जाने जाते हैं और कहीं विघ्नहर्ता गौरी पुत्र गणेश स्थापित हैं।कहा जाता है आदिनाथ महादेव और मां आदिशक्ति के द्वारा इस पवित्र तपोभूमि में शैव और शाक्त परंपरा का बीजारोपण किया गया जिसके बाद से यहां पर तांत्रोक्त विद्या की पद्धति भी जागृत हुई। जब भगवान शिव ने डमरू की रचना करी और डमरू से अनहद नाद उत्पन्न किया तो उस सारे क्षेत्र की नकारात्मक शक्तियां अस्तित्वहीन हो गयी।आज शिव व शक्ति की उसी अनहद नाद जिसे गंधर्व सरलता से समझ जाते थे,हमारे उत्तराखंड के देव गुरु अपने वाद्ययंत्र हुडुका,ढोल नगाड़े,डॉर आदि में वही स्वर उत्पन्न कर उत्तराखंड के परंपरागत प्रचंड लोकदेवताओं का आहवान करते हैं। उत्तराखंड को देवभूमि इसीलिए कहा जाता है,वहां पर भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण की तरह ऐसे ऐसे मानवीय जन्म हुए हैं,जिन्होंने अन्यायियों के चुंगल से वहां की भोली भाली जनता को मुक्ति दिलायी और वही देवतुल्य मनुष्य अपने सद्कर्मों से वहां की जनता के लिए कालान्तर में ग्राम देवता या कुल देवता बन गये। ये सब वहां के लोकदेवता की श्रेणी में आते हैं।पहाड़ के महान गुरूओं की गंधर्व जागर शैली मानव और देवता को आपस में जोड़ती है और वहीं से शुरू होता है “देव अवतरण”।”देव अवतरण” एक ऐसी अद्भुत अदृश्य शक्ति है जिस देवता का गुरु आह्वान करता है वह लोकदेवता किसी मानव को अपनी सवारी बनाता है और उस मानव में आंशिक प्रवेश कर उसके संपूर्ण शरीर में अपने समय के न्यायिक कार्यों व अपने समय के संगीत कला व उसके उल्लास का प्रस्तुतिकरण करता है। इस दौरान उसके अनुयायी पीढ़ी न्याय की गुहार करती है तो उसके साथ न्याय भी कर जाते हैं और अपने सच्चे उपासकों को साक्षात आशीर्वाद भी दे जाते हैं।जिस मानव के शरीर में देव प्रवेश करते हैं, उसके बाद उसके शरीर के अंदर ही अंदर उनका मंदिर भी स्थापित हो जाता है और स्थापना होने के बाद उस मंदिर की स्वच्छता और दिव्यता को बनाये रखने के लिए हर देव सवारी को अपवित्रता से परहेज और कड़े नियमों का पालन करना होता है जो सही नियम धर्म का पालन करेगा उसमें उतनी ही प्रचंड देव की शक्ति होती है। देव अवतरण की विद्या का उत्थान करने में शैव और शाक्त परंपरा के साथ-साथ नाथ संप्रदाय का भी अतुलनीय योगदान है और आज हमारे लिए यह गूढ़ रहस्यों की कुंजी है। यदि निरंतर कुल देवों की कृपा बनी रहती है तो मानव के वंश में वृद्धि होती है, सुख समृद्धि के साथ साथ उसके घर में निश्चित रूप से खुशहाली भी आती है। हमें अपनी आगे की पीढ़ी को भी इसी प्रकार अपनी देवभूमि के जड़ों से जोड़कर उसे अलौकिक और दिव्य शक्ति का अनुभव जरूर कराना चाहिए जिस जगह से हमारे पूर्वजों ने हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाया वहां वर्ष में एक बार अपनी पितृ कुड़ी में जाकर उन कुलदेवताओं के नाम का आवाहन गंधर्व विद्या द्वारा जरूर कराना चाहिए जिससे आपको आपके कुलदेवता धीरे-धीरे एकबार दोषमुक्त करने की स्थिति में आ जाते हैं आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा पो ओ.-बरसीर रुद्रप्रयाग/श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान् उत्तराखंड

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