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प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल। पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में गढ़वाल हिमालय में अनादिकाल से असंख्य देवी देवताओं का निवास स्थान का वर्णन देखने को मिलता है,यहां के तीर्थ स्थल,मठ मंदिर प्राचीन नागर शैली,कत्यूरी शैली व वर्तमान फटाफट शैली (सीमेंट,रोड़ी,रेत,सरिया) के बने हैं,यहां के बाशिंदे पूर्ण रूप से इन देवी देवताओं पर निर्भर रहते हैं,ये देवी देवता अलौकिक शक्ति संपन्न होते हैं,इनकी पूजा अर्चना करने से परिवार के रोग-शोक और उपद्रव नष्ट होते देखे जाते हैं,अधिकतर लोग इन देवी-देवताओं पर विश्वास करके विविध बाधाओं से मुक्ति पाने की कामना करते हैं,धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो संपूर्ण गढ़वाल क्षेत्र अत्युत्तम माना गया है,इसलिए तो उत्तराखंड की भूमि को देवभूमि कहा जाता है। मां भगवती नगरासणी सभी की जननी है इसमें किसी तरह की अतिशयोक्ति नहीं होगी। जनश्रुतियों एवं लोक मान्यताओं के आधार पर प्रख्यात पुराणवक्ता डॉ.प्रकाश चमोली ने बताया की भगवती नगरसणी देवी/इन्द्रासणी नगर-श्रीनगर-आसीन नगरासीन सुमाड़ी गांव के उपर एवं गौलक्ष्य पर्वत पर स्थित मां नगरासणी मन्दिर स्थित है कदाचित यह इन्द्रसणी कहीं टिहरी कुमासणी भी हो सकता है,सप्त मातृकाओ का [3] उल्लेख है:- ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा। वाराही च तथेन्द्राणी चामुण्डा सप्तमातर:॥ प्राचीन समय में द्वार देवी से लेकर वन देवी तक कई प्रकार की देवियों का वर्णन मिलता है। उत्तराखंड के लोक देवता पुस्तक के अनुसार यह बताया गया की देवी चांदपुर गढ़ी में उनकी बहन बनकर रहने वाली यह देवी वहां टिहरी नरेश के साथ यहां आई थी और यहां पर यह स्थान उन्हें इतना अच्छा लगा की वह यही पर आसीन हो गई,यहां जो मूर्ति है वह महिषासुर मर्दनी की है,इसका पौराणिक प्रसंग इस प्रकार से है। देवी भागवत पुराण में महिषासुर की कथा देवी भागवत पुराण में कथा है कि रंभ नामक एक असुर था जिसने अग्निदेव की तपस्या से एक पुत्र को प्राप्त किया था जो एक महिषी यानी भैंस से उत्पन्न हुआ था इसलिए वह महिषासुर कहलाया। यह असुर वरदान के कारण जब चाहे मनुष्य और भैंस का रूप ले सकता था। ब्रह्माजी की तपस्या करके इसने वरदान पा लिया था कि कोई स्त्री ही उसका अंत कर सकती है। इसलिए यह देवताओं के लिए अजेय था और शक्ति के मद में आकर इसने देवलोक पर अधिकार कर लिया। महिषासुर के शासन में देवता और मनुष्य भयभीत रहने लगे। ऐसे में सभी देवी देवताओं ने अपने तेज को मिलाकर एक तेजोमय शक्ति को प्रकट किया जो स्त्री रूप में अवतरित हुई। यही महिषासुर मर्दनी कहलायी संस्कृत में महिष भैंस के लिए कहते हैं दूसरा प्रसंग जनश्रुतियों एवं लोक मान्यताओं के आधार पर बताया गया कि यह मूर्ति बहकर श्रीनगर/श्रीकोट में बहकर आयी जलेथा का कोई राणा वंश का आदमी था जिसकी सन्तान नहीं थी स्वप्न में देवी ने कहा मैं यहां पर हूं यहां से लेकर स्थापित करो वह देवी को उठाकर लाया की स्थानों पर रखा यह स्थलदेवी को सबसे अच्छा लगा इसलिए जलेथा वाले मैती हरकण्ड़ी वाले देवी के ससुराल वाले माने जाते हैं,यह अभी और भी शोध का विषय है सबकी इस बारे अलग सोच हो सकती है। मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे।। इस स्थान पर यज्ञ पूजन हवन सुमाड़ी जलेथा हरकण्ड़ी वालों के द्वारा किया जाता है। भगवती नगरासणी देवी पर आधारित दुसरा प्रसंग जनश्रुतियों एवं लोक मान्यताओं के आधार पर सुमाड़ी के सुप्रसिद्ध लेखक,कला प्रेमी,समाजसेवी,भूतपूर्व सैनिक विमल चन्द्र काला (गोपी) ने बताया कि नगरासणी देवी को महीषा मर्दनी के रूप में देखा गया है,नगरासणी देवी के मंदिर तीन स्थानों पर बने हैं पहला चंद्रापुरी कस्बे से आगे मंदाकिनी तट पर नगरसाल वीरा गांव में है,दूसरा मंदिर तिलवाड़ा कस्बे के आगे तीन-चार किलोमीटर पर मयाली गांव के समीप नगरासणी तोक नामक पहाड़ी की गुफा में देवी का महिषासुर मर्दनी का विग्रह प्राचीन काल से पूजित था,मयाली गांव के बच्ची राम काला से यह जानकारी प्राप्त हुई उन्होंने बताया कि (सम्वत-2005-6) की बात है मयाली गांव के समीप पहाड़ी पर एक गुफा थी जिसमें महिषासुर मर्दनी की मूर्ति थी,स्थानीय लोग वहां यदा-कदा पूजन करते थे इस संवत वहां पहाड़ी पर बजर (क्लाउड व्रस्ट) हुआ और गुफा का क्षेत्र बह कर चला गया,वहां पर एक मात्र त्रिशूल और एक खड़ग किनारे मिले,समय गुजरता गया अब वर्तमान में गांव के समीप ही नगरासणी तोक नामक स्थान पर भव्य मंदिर बना दिया गया है। तीसरा मंदिर सुमाड़ी गांव के शीर्ष गौल्क्षय पर्वत नगरासणी तोक पर बना हुआ है। जिसमें महिषासुर मर्दनी की काले पत्थर पर 24 इंच ऊंचाई तथा 18 इंच चौड़े पत्थर पर मूर्ति बनी हुई स्थापित है, यह स्थान समुद्र तल से दो हजार दो सौ पच्चीस मीटर ऊंचाई पर स्थित है,इस मूर्ति के विषय में बताते हैं कि यह मूर्ति बह कर श्रीनगर अलकनंदा के तट पर किनारे रेत-बालू में दबी थी,प्रमाणित है कि इन आराध्य शक्तियों का भक्तों के साथ भी संबंध रहे हैं,सच्चे ईश्वर भक्ति प्रत्येक जाति,धर्म देश में पैदा होते आए हैं,वे प्राणिमात्र के शुभचिंतक और उपकारी होते हैं,ऐसे ही एक भक्ति श्रीनगर से 18 किलोमीटर दूर ग्राम जलेथा पट्टी-चलणस्यूॅं जनपद-पौड़ी गढ़वाल में राणा कुल में मक्खू राणा का जन्म हुआ था ये गृहस्थी थे एक रात रेत में दवी हुई मूर्ति उनके स्वप्न में गई और कहा कि मैं अलकनंदा के तट पर रेत में दवी हुई हूं मेरे ऊपर का रेत हटाकर मुझे उठाकर ले जाना और कहा कि जिधर को मैं हल्की होकर तुम्हें धक्का दूंगी तुम उधर ही चलते रहना और जहां पर मैं भारी हो जाऊंगी वहीं पर मुझे स्थापित कर देना। मक्खू राणा ने यह स्वप्न की बात अपनी धर्मपत्नी से कहीं लेकिन उसने मिथ्या स्वप्न समझ कर स्वप्न की बात टाल देने को कहा,फिर दूसरे दिन वही स्वप्न पूर्ववत हुआ उसने फिर अपनी पत्नी से कहा अब तो स्वप्न वाली बात में कुछ सार नजर आने लगा और फिर निर्णय हुआ की सत्यता को परखा जाए वह चल पड़ा स्वप्न में बताई जगह पर गया फिर रेत हटाना शुरू किया थोड़ा ही परिश्रम के उपरांत उसे रेत में दबा काले पत्थर का किनारा तिरछा खड़ा नजर आया कुछ आशा बंधी उसने उत्साह से रेत हटाना शुरू किया और मूर्ति उठकर नदी के पानी से नहलाया,तदउपरान्त चादर में लपेटकर उसे सर पर उठाया और चल दिया घर की राह हर्षित था कि स्वप्न की बात सत्य हो गई,मूर्ति अपने गांव ले जाऊंगा पैदल मार्ग से होते हुए ग्राम क्वीसू-सौडू तक आया इस गांव से दो रास्ते जाते हैं एक जलेथा की ओर दुसरा सुमाड़ी की ओर मक्खू राणा अपने गांव की ओर कदम बढ़ा रहे थे कि जोर का धक्का लगा और सुमाड़ी की ओर चलने का संकेत मिला उसने सोचा कि अब मूर्ति सुमाड़ी गांव में ही विश्राम लेगी,लेकिन शक्ति को कुछ और ही मंजूर था,सुमाड़ी गांव में पहुंच कर सीधे गांव के शीर्ष पर पहुंचने का संकेत मिला,शीर्ष पर पहुंच कर गौल्क्षय पर्वत पर स्थित नगरासणी तोक में पहुंचा समतल भाग में जैसे ही पहुंचा की मूर्ति का भार अधिक बढ़ने लगा फीर मक्खू राणा ने मूर्ति को नीचे जमीन पर रखने के लिए मजबूर हो गया उसने मूर्ति जमीन पर रखी फीर मक्खू राणा ने दोबारा उठाने का प्रयास किया परंतु उठा न सका थका हारा अपने गांव गया और कुछ बलिष्ठ व्यक्तियों को साथ लाया और फिर सामूहिक बल से मूर्ति उठाने का प्रयास किया लेकिन मूर्ति उठा न सके। और मक्खू राणा को उसी रात्रि को फिर स्वप्न हुआ कि मुझे वहीं स्थापित कर दो फिर सुमाड़ी-जलेथा-हरकन्ड़ी वालों ने मां भगवती नगरासणी का मंदिर शैली तलछन्द बनाया गया फिर मां भगवती का पाठ पूजन कर भव्य मंदिर बनाया गया और आज भी पूजा पाठ,हवन-यज्ञ तीनों गांव के लोग करते हैं। अभी मां भगवती नगरासणी का भव्य नया मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है।

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