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प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल।‌ हमारा देश भारत विशाल देश है जिसकी भौगोलिक और प्राकृतिक,सांस्कृतिक,जाति,लिंग,धर्म,ओर रहन सहन,खान पान,वेशभूषा और मूल मान्यताएं परम्परा में भिन्नता होने पर भी विविधता में एकता का परिचारक है। उत्तराखंड राज्य भौगोलिक रूप से एक पहाड़ी प्रदेश है परन्तु प्रकृति ने यहां पर मानव जीवन के लिए भरपूर प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण किया गया है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां के लोगों की सोच के अनुरूप यह राज्य विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है जो कि इस बात का परिणाम है कि आज यहां की प्रमुख समस्या पलायन बन चुकी है पहाड़ो पर स्वास्थ्य,शिक्षा, रोजगार के अभाव में यहां के गांव आज वीरान होते जा रहे हैं। क्यों कि आजीविका के साधनों की कमी के कारण लोग रोजगार की खोज में मैदानी क्षेत्रों की ओर दौड़ लगा रहे हैं। इस विषय पर जसपाल सिंह गुसाई सहायक अध्यापक ने बताया कि यहां पर प्राकृतिक संसाधनों की भरपूर मात्रा है,पर इनके आधुनिकीकरण और जानकारी व तकनीकी के अभाव में इन संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं किया जा रहा है। आज मैं बात करूं कि हमारे पहाड़ो में कई कांटेदार पौधे पाए जाते हैं जिनमे हीसर,किनगोड के पौधों की बात कर रहा हूं। यह पौधा हमारे पहाड़ो पर हर मौसम में उगता है और इसकी जड़ें बहुत ही उपयोगी हैं जो कि आर्युवेद में बड़ी बड़ी लाइलाज बीमारियों को ठीक करने का काम करती हैं। इन पौधों का आज पहाड़ों पर ह्रास हो रहा है और इनका न तो कोई संरक्षण कर रहा है और नहीं इनकी ओर सरकार ध्यान दे रही है। उन्होंने आगे कहा कि यदि सरकार इस विषय पर कोई ठोस नीति का निर्धारण करे और इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करे तो यह पहाड़ो के युवाओं के लिए रोजगार का जरिया भी बन सकता है। जिससे कि हमें पलायन को रोकने में मदद मिलेगी और हमारे पहाड़ी क्षेत्र के निवासियों की आर्थिकी का श्रोत भी बन जाएगा। क्योंकि यह पौधे औषधीय गुणों से भरपूर हैं जो कि मानव जीवन को बचाने में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में दवाईयां नहीं थी उस समय के लोगों ने जड़ी बूटियों द्वारा अपनी बीमारियों को ठीक किया करते थे। किनगोड़ की जड़ से निकलने वाली पदार्थ में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं किनगोड़ के फल से लेकर जड़ तक इस पौधे का प्रयोग दवाईयां बनाने का काम आता है इसमे एन्टी डायबेटिक गुण होता है,इसका रंग पीला होता है जो कि सुगर की बीमारी के इलाज के लिए रामवाण माना जाता है किनगोड़ की जड़ो को शाम को पानी में भीगो कर सुबह उसका पानी पीने से शुगर के रोग से बेहतर ढंग से लड़ा जा सकता है।साथ ही किनगोड़ का पानी पीलिया के रोग में भी लाभकारी होता है। साथ ही इसके तनो से जो पीला रंग निकलता है,उसका प्रयोग चमड़े को रंगने में भी लाया जाता है,लोगों को इसके गुणों की ज्यादा जानकारी न होने के कारण इसकी जड़ों को खोद कर बाहरी ठेकेदार चोरी करके ले जाते हैं,जिससे यह पौधा धीरे धीरे लुप्त होने की कगार पर भी है। इस पौधे को पहाड़ो में दारू हल्दी के नाम से भी जानते हैं। किनगोड़ का वानस्पतिक नाम बरबरीस एरिसटाटा है जिसके कारण इसका रंग पीला होता है। इसके फलों का सेवन मूत्र रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है। और इसके फलों में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है,जो त्वचा के रोगों में भी गुणकारी होता है।इस प्रकार से हींसर में भी औषधीय गुण हैं। इसके फलों में एन्टीओक्सोडेन्ट पाए जाते हैं जो कि हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता है और हमें अनेक रोगों से बचाने का काम करता है। यदि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है तो हम बीमारी का शिकार नही हो सकते हैं। गांवों में पहले इन पौधों को काट कर इनकी कंटीली झाड़ियों को खेतों की बाड़ के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस विषय पर उन्होंने आगे बताया कि इन पौधों का व्यवसायीकरण होना चाहिए,दूसरा इन पौधों को उगाने से पहाड़ों में जो भू स्खलन की समस्या है भू क्षरण की समस्या होती है उस पर भी रोक लगेगी क्योंकि कि इनकी जड़े मिट्टी को जकड़ कर रखती हैं। मुझे पहाड़ो में बहुत से स्थानों पर भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ तो मैं जिस भी क्षेत्र में गया हूं निश्चित उस क्षेत्र में किनगोड़ और हिसर के पौधे अवश्य दिखाई दिए हैं। इनके फलों को भी हमारे पूर्वजों ने अपने भोजन में शामिल किया है,जब भी इनके फल पकते हैं उस समय सभी लोग इनके फलों को खाने के लिए आकर्षित होते हैं हम तो जब छोटे थे तो सुबह उठ कर पहले हिसर के लाल लाल दानों को डिब्बे में भरकर लाते थे और घर पर परिवार के सभी सदस्य मिल बांटकर खाया करते थे। इस प्रकार से हमें यह बात आज अपनी सरकारों और सामाजिक संगठनों,महिला समूहों के बीच में लाने की आवश्यकता है कि सभी इस काम पर यदि गम्भीरता पूर्वक विचार कर ठोस कार्ययोजना बनाते हैं तो हम बहुत कुछ समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। यदि जरूरत है तो केवल धरातल पर काम करने की और यदि धरातल पर काम किया जाता है तो निश्चित ही आने वाले समय में इसके परिणाम बहुत ही सुखद और सकारात्मक होंगे।
जसपाल सिंह गुसांई (स.अ.)
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय-गहड़,चलणस्यूं विकास खण्ड खिर्सू,पौड़ी गढ़वाल।

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