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प्रदीप कुमार देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय आंचल में जनपद रुद्रप्रयाग के बच्छणस्यूं पट्टी में स्थित गुरु गोरखनाथ का पौराणिक डांडा, गुरु गोरखनाथ पर्वत की महिमा अपनी भौगोलिक रचना में विशिष्ट स्थान रखता है। गुरु गोरखनाथ पर्वत डांडा के विषय में हमें प्रसिद्ध पुराणवक्ता डॉ.प्रकाश चन्द्र चमोली ने वृस्तित जानकारी से अवगत कराया। गुरु गोरखनाथ जगे,ओंकारनाथ जगे,त्रिलोकी नाथ जगे, केदारनाथ जगे,गोरक्ष डांडो छोट्टो मेरो अणजीण बडो बचपन में आंख की बीमारी होने पर यह मन्त्र बोला जाता था,आंख की बीमारी ठीक भी हो जाती थी,इसके पीछे मिथक तर्क़ ढुढने की जरूरत नहीं है यह आस्था का विषय है,यह डांडा है रुद्रप्रयाग जनपद के अगस्त्य मुनि विकास क्षेत्र के पट्टी बच्छणस्यूँ के ग्राम एवं दानकोट के ऊपर जंगल में गोरक्षनाथ का डांडा/जंगल विद्यमान है किंवदंती जनश्रुतियों लोकमान्यताओं के आधार पर कहा जाता है की जब कभी पैदल मार्ग रहा होगा चौरी बंगला से रास्ता रहा होगा उस समय डाकर जाने वाले यहां पर रुका करते थे यहां पर कोई डर नहीं होती थी
यहां पर प्राचीन काल में गोरखनाथ नाथ परंपरा के अग्रणी गुरु रहे है,इनके नाम से अनेक शाबर मंत्र,तंत्र आदि प्रचलित हुए। एक समय था जब तंत्र के अनेक चमत्कार गोरखनाथ के नाम से ही मशहूर होने लगे,चाहे वह तंत्र की किसी भी परंपरा से रहे हो। अनेक शाबर मंत्र गोरखनाथ के नाम से बने। उस समय लोगो ने तंत्र को चमत्कार से जोड़कर देखना शुरू कर दिया। पुरातत्व विभाग से अवकाश प्राप्त तथा ऐतिहासिक स्थलों पर पैनी नजर रखने वाले जयदीप नेगी बताते है की उस समय महड महादेव बैरगणा मन्दिर समूह एवं श्रीमुणडा महादेव के दर्शन करते हुए गोरक्षनाथ के डांडा से रास्ता जाता रहा होगा या उनके द्वारा यहां पर तपस्या की गई होगी
गोरखनाथ संस्कृत में गोरक्षनाथ
नेपाल राजवंश से सदियों से संबंध,मान्यता है कि नेपाल राजवंश का उद्भव भगवान गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था,जिसके बाद शाह परिवार पर भगवान गोरखनाथ का हमेशा आशीर्वाद रहा है. यही कारण है कि नेपाल राजवंश ने गुरु गोरखनाथ की चरण पादुका को अपने मुकुट पर बना रखा था,नेपाल के सिक्कों पर गुरु गोरखनाथ का नाम लिखा है उस काल खंड भारत नेपाल से लेकर कई देशों में उनका प्रभुत्व रहा है,उनके नाम की गुफा श्रीनगर गढ़वाल में प्रसिद्ध है तथा उनके नाम से गोरखपुर से लेकर अनेक स्थान है,उस समय कहा जाता था
नाथ कहंता सब जग नाथ्या उस समय नाथो की ही जयकार होती थी। भारत में शंकराचार्य के बाद सबसे अधिक प्रसिद्धि गोरक्षनाथ जी की रही है,आज भी लोग बताते हैं की गोरक्षनाथ के डांडा में श्रावण एवं पौष मास में वहां दीपक जला दिखाई देता है। साथ ही उस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की डर भय नहीं होती है,क्षेत्रीय अवकाश प्राप्त शिक्षण सुरेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं की जब कभी वर्षा नहीं होती है तो गोरखनाथ डांडा में पूजन करने से वर्षा हो जाती है। यात्री उस काल खंड में सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान सबसे सुरक्षित माना जाता था। पूजन स्थानीय लोगों द्वारा श्रावण में वहां पर भण्डार पूजन किया जाता है।

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