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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत लेने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है–अखिलेश चन्द्र चमोला

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। ऋषि मुनियों की तपस्थली भारत वर्ष सदियों से ही विश्व का मार्ग दर्शन करता रहा है। यही कारण है कि यहां की धरती पर जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं। गायन्ति देवा किलगीत कानि धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गा पवर्गा स्पद हेतु भूते भवन्ति भुव पुरुषा सुरत्वात।।
यही कारण है कि इस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम श्रीकृष्ण भगवान,महात्मा बुद्ध,महावीर स्वामी जैसी शक्तियां अवतरित हुई। जिन्होंने समाज में मर्यादा स्थापित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया। इन दिव्य व अवतारी पुरुषों में श्री कृष्ण का नाम बड़े ही गौरव व आदर के साथ लिया जाता है।16 कलाओं के मर्मज्ञ के रुप में श्री कृष्ण को ही जाना जाता है। इन्हीं के जन्म को जन्माष्टमी के पर्व के रुप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह पुनीत पर्व 26 अगस्त सोमवार को है। पूर्ण पुरूषोत्तम विश्वंभर प्रभु का भाद्रप्रद मास के अंधकार पक्ष कृष्ण की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में अवतरित होना निराशा में आशा का संचार उजागर करता है। अर्धरात्रि के समय जबकि अज्ञान रुपी अन्धकार का विनाश और ज्ञान रुपी चन्द्रमा का उदय हो रहा था।उस समय देवकी के गर्भ से सबके अंतकरण में विराजमान पूर्ण पुरूषोत्तम व्यापक परब्रह्म विश्वंभर प्रभु भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए। जन्माष्टमी को पूरे दिन व्रत रखने का विधान है। इस दिन केले के खम्बे आम व अशोक के पल्लव आदि से घर सजाया जाता है। रात्रि में श्रीकृष्ण की मूर्ति का षोडशोपचार से विधि पूर्वक पूजा की जाती है। “ऊ नमः भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र से पूजन कर वस्त्रालंकार से सुसज्जित करके भगवान श्रीकृष्ण को हिंडोले में प्रतिष्ठित किया जाता है। विभिन्न प्रकार के फल पुष्प छुहारे अनार नारियल मिष्ठान तथा नाना प्रकार के मेवे का प्रसाद सजाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। जन्मोत्सव के बाद कर्पूर आदि प्रज्वलित कर शास्वत भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है। उसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है। जन्माष्टमी का उपवास लेने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।जीवन में ऊर्जा का संचार पैदा होता है। निःसंतान दम्पत्ति के लिए यह व्रत बडा ही प्रभाव कारी माना जाता है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के घनघोर अंधकार में श्रीकृष्ण भगवान का अवतरण हुआ। पूर्व जन्म में वासुदेव श्रेष्ठ प्रजापति कश्यप व उनकी पत्नी सुतपा माता अदिति थी। प्रजापति कश्यप व अदिति ने श्रीकृष्ण भगवान की कठोर तपस्या की। तपस्या से खुश होकर श्रीकृष्ण भगवान ने उनसे मनचाहा वर मांगने को कहा तो कश्यप ने उन्हें पुत्र के रूप में मांगा। इसी तरह से एक अन्य कथा भी है कि त्रेता युग में रामचंद्र के सूर्य वंश में जन्म लेने के कारण सूर्य देव अस्त ही नही हुए। इससे चन्द्रमा बहुत दुखी हुए। राम से अपनी व्यथा सुनाई। श्रीराम चन्द्र जी ने कहा कि मेरे जन्म के साथ तुम्हारा नाम भी जुडेगा। दूसरे जन्म में अवतार स्वरुप भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। उनके मुकुट पर मोर पंख के साथ चन्द्रमा भी शोभायमान हुआ। जन्माष्टमी पर उपवास रखने पर किसी तरह से क्रोध नही करना चाहिए। इन्द्रिय निग्रह का पालन कर गीता के द्वितीय अध्याय का पाठ जरुर करना चाहिए। गोमाता को शुद्धता पूर्वक खाना खिलाने से भगवान खुश होते हैं। शास्त्रीय मान्यता है कि जो मनुष्‍य जन्माष्टमी का व्रत लेता है वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है। लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला कला निष्णात स्वर्णपदक प्राप्त’महामहिम राज्यपाल मुख्यमन्त्री सम्मान के साथ बिभिन्न राष्टीय सम्मानोपाधियों से सम्मानित।

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