राज्य की अवधारणा एवं राज्य आंदोलनकारियों से जुड़ी समस्याओं के समाधान हेतु राज्यपाल,मुख्यमंत्री,नेता प्रतिपक्ष को भेजा ज्ञापन–धीरेन्द्र प्रताप
श्रीनगर गढ़वाल। राज्य की अवधारणा एवं राज्य आंदोलनकारियों से जुड़ी समस्याओं के समाधान। 42 से ज्यादा शहादत देने के बाद अस्तित्व में आया उत्तराखंड राज्य शीघ्र ही 25 वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है। जिस अपेक्षा एवं उद्देश्य से उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए उत्तराखंड की जनता ने आंदोलन किया एवं बलिदान दिया उस अवधारणा के (पहाड़ का पानी पहाड़ की जवानी) के अनुरूप राज्य विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ा जो हम सबके लिए गंभीर चिंता का विषय है। वे सारे सवाल 24 वर्ष बाद भी आज अनुउत्तरित है जिनको लेकर लोगों ने आंदोलन किया, बलिदान दिया। वे सवाल चाहे खटीमा मसूरी मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा देने का हो,चाहे राज्य की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने का,बेहतर शिक्षा-चिकित्सा का हो या रोजगार का,पहाड़ों से पलायन विस्थापन का सवाल हो,खेती का सवाल हो,प्राकृतिक संसाधनों,जल-जंगल -जमीन पर जनता के अधिकारों का सवाल हो,मूल निवास व सशक्त भू कानून बनाने का,भ्रष्टाचार माफिया मुक्त उत्तराखंड राज्य का सवाल हो,परिसीमन का सवाल हो,परिसंपत्तियों पर राज्य का अधिकार का सवाल हो,जंगली जानवरों से खेती मवेशियों लोगों की सुरक्षा का सवाल हो,कुमाऊं-गढ़वाल को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क कंडी सड़क को आम यातायात हेतु खोलने का सवाल हो या फिर प्रतिबंधित नशे के कारण बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी को बचाने का सवाल वे सारे सवाल हासिये पर चले गए हैं। राज्य गठन के बाद सैकड़ो गांव एवं स्कूल भूतिया हो गए हैं। जिसके कारण हम राज्य गठन की 24 साल बाद भी आज उद्वेलित हैं जिनका राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए समाधान होना जरूरी है। हम आपका ध्यान राज्य आंदोलनकारी की समस्याओं की ओर आकृष्ट कराते हुये तत्काल समाधान चाहते हैं।
1- राज्य आंदोलनकारीयों एवं उनके आश्रितों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह मिलने वाले सम्मान एवं सुविधाएं देने की मांग करते हैं।
2- राज्य आंदोलनकारी को प्रतिमाह मिलने वाली सम्मान राशि/मानदेय से उन चिन्हित राज्य आंदोलनकारी को वंचित रखा गया है जिन राज्य आंदोलनकारीयों को सरकारी सेवा में रहते पेंशन या उनके आश्रितों को( जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं )पति या पत्नी की मृत्यु के बाद पेंशन मिलती है । हमारा निवेदन है कि उन राज्य आंदोलनकारी को उनका हक/मानदेय उन्हें देना सुनिश्चित किया जाए।
3- राज्य आंदोलनकारियों के चिह्ननीकरण के मामले जिलाधिकारी कार्यालय में कई महीनो से लंबित है। उनका अविलंब निस्तारण किया जाए तथा संबंधित आवेदक को भी अवगत कराया जाए। चिह्ननीकरण से वंचित वास्तविक राज्य आंदोलनकारीयों को आवेदन के लिए समय देते हुऐ समय सीमा निर्धारित की जाए।
4- 26 अगस्त 2013 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा PIL संख्या 67/2011 में पारित आदेश की गलत व्याख्या के कारण शासन द्वारा लगाई गई रोक के बाद विभिन्न परीक्षा संस्थाओं,उत्तराखंड लोक सेवा आयोग,प्राविधिक शिक्षा परिषद,उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग,जी.बी.पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय आदि ने राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों के परीक्षा परिणाम और नियुक्तियों को रोक दिया था,तथा कुछ आंदोलनकारी कर्मचारियों को सेवा से हटा दिया गया था वर्तमान में,राज्य सरकार द्वारा 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण विधेयक बनाए जाने के बाद,इन रुके हुए परीक्षा परिणामों को शीघ्र घोषित कर नियुक्तियाँ देने की कृपा करें,जिससे राज्य आंदोलनकारियों के परिवारों को बहुत बड़ी राहत मिलेगी।
5- उत्तराखंड राज्य सम्मान परिषद का पद लंबे समय से खाली होने के कारण सरकार एवं राज्य आंदोलनकारी के मध्य संवादहीनता के कारण उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है।हम मांग करते हैं कि राज्य सम्मान परिषद पर तत्काल नियुक्ति की जाए।
6- हम इस सम्मेलन के माध्यम से समस्त राजनीतिक दलों से निवेदन करते हैं कि सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी पार्टियों में शामिल राज्य आंदोलनकारियों के लिए संगठन,नगर निगम,नगर निकाय,पंचायत,विधानसभा,लोकसभा में 10% आरक्षण राज्य आंदोलनकारी के लिए आरक्षित कर उनका सम्मान करने की कृपा करें। वक्ताओं में विभिन्न संगठन के पदाधिकारीयों ने बैठक में उपस्थित रहे जिसमें धीरेंद्र प्रताप केंद्रीय मुख्य संरक्षक चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति प्रभात ध्यानी महासचिव उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी,हुकुम सिंह कुंवर नेता भारतीय जनता पार्टी,अवतार सिंह बिष्ट अध्यक्ष केंद्रीय अभियान समिति चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति,भुवन जोशी संयोजक उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी मंच,केदार पलाडिया केंद्रीय प्रवक्ता उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी मंच,सावित्री नेगी अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ,निवेदक- राज्य निर्माण आंदोलनकारी /सेनानी मंंच उत्तराखंड।