शिक्षक दिवस के पुनीत सुअवसर पर डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर विशेष
प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। महापुरूष युग की मांग होते हैं। युगों से चलती विषमता की धारा को परिवर्तन करने की क्षमता उनमें निहित रहती है।वे आम जनमानस के जीवन का मार्ग दर्शन करके समाज में आमूल चूल परिवर्तन ले आते हैं।राधाकृष्णन भी इसी तरह के शख्सियत थे। जिन्होंने देश के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करके नया कीर्तिमान स्थापित किया।वे इस तरह के विराट व्यक्तित्व के धनी थे। जिनके जन्म दिवस को हम शिक्षक दिवस के रुप में मनाकर याद करते हैं। इनका जन्म 5 सितम्बर को तमिलनाडू के तिरूतानी नामक गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम सितम्मा तथा पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था।शुरूआती शिक्षा गांव के ही स्कूल में तथा मद्रास क्रिश्चियन काॅलेज से कला स्नातक व कला निष्णात किया।17 वर्ष की उम्र में शिवकमु अम्मा से विवाह सम्पन्न हुआ। 1909 में मद्रास के प्रेसीडेन्सी काॅलेज सहायक अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए 1918 में मैसूर विश्व विद्यालय में दर्शन शास्त्र जैसे गूढ़ विषय के प्राध्यापक बने।1921 में कोलकात्ता विश्व विद्यालय चले गये वहां दर्शन शास्त्र का शिक्षक कार्य करने लगे। 1928 में आ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ शैक्षिक सम्बन्धों की शुरूआत करते हुए 1931 में आन्ध्र विश्व विद्यालय के कुलपति बने।1939 में काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के कुलपति पद पर कार्य किया।1954 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति बने’ इसी वर्ष भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी विभूषित हुए। लेखक के रूप में भी डॉ.सर्वपल्ली का योगदान अग्रणी रहा। इनके द्वारा द एथिक्स ऑफ वेदान्त,दफिलासफी ऑफ रवीन्द्र नाथ टैगोर,मायी सर्च फार,ट्रुथ द रेन ऑफ कंटम्परेरी फिलासफी,रिलीजन एन्ड सोसायटी इन्डियन फिलासफी द एशोन्सियल ऑफ सायंकाल आदि महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी। 1955 में भारत के उपराष्ट्रपति चुने गये।राज्यसभा में होने वाली बहस को भी अपनी वाकपटुता से सरस बना देते थे। इस सन्दर्भ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा -राधाकृष्णन जिस तरीके से सदन की कार्रवाई का संचालन करते थे उससे यह स्पष्ट होता था कि यह सभा की बैठक नही अपितु पारिवारिक मिलन समारोह है। 1962 से 1967 तक गणतंत्र भारत के द्वितीय राष्ट्र पति के रूप में कार्य किया। इनकी वाणी में आकर्षण शक्ति थी। इस प्रकार इन्होंने समय समय पर देश के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। लेकिन एक शिक्षक के रूप में जो अमिट छाप छोडी वह युग युगों तक स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगी। 17 अप्रैल 1975 को यह सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।नोबेल पुरूस्कार विजेता सी.वी.रमन ने इनकी मृत्यु पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा -राधाकृष्णन के दुबले पतले शरीर में एक महान आत्मा का निवास था। एक ऐसी विशिष्ठ व प्रभाव कारी आत्मा जिसकी हम सभी श्रद्धा प्रशंसा यहां तक कि हम पूजा करना भी सीख गये। लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला
कला निष्णात दर्शन शास्त्र स्वर्ण पदक प्राप्त अन्तरराष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित श्रीनगर गढ़वाल।