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29 अक्टूबर को होने वाले पुनीत पर्व धनतेरस के संदर्भ में लेखक–अखिलेश चन्द्र चमोला

प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल। धनतेरस 29 अक्टूबर के पावन पर्व पर अखिलेश चंद्र चमोला ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति में मानव जीवन को धर्म-अर्थ,काम-मोक्ष पुरुषार्थों में विभाजित किया गया है। धर्म रूपी आधारभूत पुरुषार्थ के बाद अर्थ को सर्वोपरि महत्व दिया गया है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि अर्थ के बिना कोई भी क्रिया सही तरीके से संपादित नही की जा सकती है। मनुष्य के जीवन में धन का होना बहुत जरूरी है। धन की सार्थकता को हमारे ऋषि मुनियों ने भी सहर्ष रूप से स्वीकारा है। प्रत्येक व्यक्ति की हार्दिक इच्छा होती है उस पर लक्ष्मी की कृपा बनी रहे । इस लक्ष्मी की अनुकम्पा को धन तेरस का त्योहार उजागर करता है। धनतेरस दो शब्दों के मेल से बना हुआ है। धन और तेरस का अर्थ सम्पदा तेरस का अर्थ है तेरह गुना”अर्थात् इस पर्व पूजा जप तप करने से धन में तेरह गुना वृद्धि हो जाती है। इसे धन की त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान धनवंतरी के प्रकार होने के कारण आर्युवैद में इस पर्व को धनवंतरी जयन्ती के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस वर्ष यह पुनीत पर्व 29 अक्टूबर मंगलवार को मनाया जायेगा। शाम को 6 बजकर पांच मिनट से शुरू होकर रात्ति के 8 बजकर 31 मिनट में इसकी पूजा करने का शुभ मुहूर्त है। इस पर्व पर पूजा पाठ जप तप करने से महा मृत्युंजय के जप के समान महातम्य की प्राप्ति होती है। परिवार में खुशिहाली का वातावरण छा जाता है। जीवन के प्रत्येक कदमों में सफलता के समाचार मिलने शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों में इस तरह का विवरण देखने को मिलता है कि एक समय देवताओं के आगे आसूरी शक्ति इतनी ज्यादा प्रभावी हो गई थी कि स्वयं देवता भी अपने आप को असहाय महसूस करने लग गये थे। देवताओं को अमृत पिलाने की इच्छा से ही भगवान धनवंतरी समुद्र से प्रकट हुए। इस दिन दीपदान के साथ ही गन्ध अछत से पूजा करनी चाहिए। क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की मानी जाती है। दीपक के सामने बड़ी ही श्रद्धा से इस तरह से प्रार्थना करनी चाहिए-मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्य या सह। त्योदश्याम दीपदानात्सूर्यज, प्रीयतामिति। यमुना यमराज की बहन है। इसलिए धनतेरस पर यमुना स्नान का भी अपना एक अलग महत्व है। इस दिन सर्वप्रथम पूजा के मुहूर्त में कुबेर यंत्र,पीला वस्त्र,अक्षत,अष्टगंध,नाला,फूल,घी,दीपक,तरह-तरह के पकवान,पान,सुपारी,इलायची,एकाक्षी नारियल,गोमती चक्र,सियार सिंगी आदि की आवश्यकता होती है। इस दिन उत्तर दिशा की ओर कुबेर यंत्र को स्थापित करें। अपने आप पीले वस्त्र पहने। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाए। साथ ही सियार सिंगी और गोमती चक्र को भी पूजा में रखें। चार मुंह वाला दीपक प्रज्वलित करें। दीपक को अपने बाएं हाथ कीओर रखें। तत्पश्चात गणेश भगवान व कुबेर यंत्र की एक निष्स्ट भाव से पूजा करें। कुबेर देवता का विनियोग और न्यासा करें। इसके बाद पूर्ण श्रद्धा से अक्षत पुष्प कुबेर यंत्र पर छिड़के। कुबेर की इस मंत्र के साथ ऊं श्रीं ऊं श्रीं ह्लीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः का 1100 बार जाप करें। जप करने के बाद गणेश व मां लक्ष्मी की आरती करें। आरती के बाद कुबेर यंत्र को पूजा स्थान में रखें। इस तरह का विधान करने से जीवन में कभी भी घन की कमी देखने को नहीं मिलती है। इस दिन कोई ना कोई आभूषण या बर्तन अवश्य खरीदना चाहिए। धनतेरस के संदर्भ में हमारे धार्मिक ग्रंथो में बड़ी हृदय स्पर्शी कहानी का विवरण देखने को मिलता है। एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा-तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्यु लोक के प्राणियों के प्राण हार लेते हो। क्या तुम्हें कभी ऐसा करते समय दया भी आती है। इस पर यमदूतों ने कहा महाराज हम लोगों के कर्म अत्यंत क्रूर है। परंतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु पर उसका प्राण हरण करते समय वहां का करूण क्रंदम सुनकर हम लोगों का पत्थर हृदय भी विचलित हो जाता है। एक बार हम लोग किसी राजा के प्राण हरने गए तो वहां का करुण क्रंदन चीत्कार हा-हा-कार देखकर घृणा होने लगी। वहां राजकुमार के विवाह का उत्सव मनाया जा रहा था। अतः हे स्वामिन कृपा करके इस तरह की कोई युक्ति बताइए? जिससे इस तरह की अकाल मृत्यु न हो। इस पर मृत्यु के देवता यमराज ने कहा जो धनतेरस पर मेरे नाम का दीपदान करेगा उसकी इस तरह की असामयिक मृत्यु नहीं होगी। इस प्रकार से इस पर्व पर पूजा पाठ करने के साथ ही कथा का भी श्रवण करना चाहिए।

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