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प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल जीवन का लक्ष्य आनंद प्राप्ति है,सभी उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं,लेकिन आनंद की प्राप्ति की चेष्टाएं रहने पर भी आज मानव दुःखी है,ऐसे में मानना पड़ेगा कि मनुष्य का जीवन के प्रति दृष्टिकोण भ्रामक और गलत है,आनंद की प्राप्ति के लिए हमने जो रास्ता पकड़ा
उस पर चलने से निरंतर दुःख ही मिले तो फिर आज रुक कर सोचने की आवश्यकता है कि कही हमने रास्ता गलत तो नहीं चुन लिया है। आज हमारे जीवन के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं है,संसार एक विशाल रंगमंच है,जहां पर अनेक प्रकार के नाटक चलते रहते हैं,नाटक का आनंद लेने के लिए साक्षी भाव होना जरूरी है,जिससे हम मोह स्थापित कर सकते हैं,वह संसार बजाता है,जिसमे साक्षी भाव बन जाता है,इतना ही अंतर संसार और नाटक में है,यह अंतर मूल रूप से दृष्टिकोण का है,आसक्ति की मानो ब्रिटी होने पर संसार जटिल और जंजाल रूपी लगने लगते हैं, अत्यधिक दुःख दाई दिखने लगता है। हम शरीर नहीं वरन अलग आत्मा है,इस नाटकीय दृष्टि में हम सब खेल का आनंद लेने के लिऐ आए हैं,न कि इसमें फंस कर दुःखी वा अशांत होने के लिए,नाटक के अभिनय का कोई प्रभाव हम पर भी पड़ता चाहिए,यही जीवन का यथार्थ है,दृष्टिकोण है,जिसे भूलने पर मनुष्य का जीवन सदा निश्चित हल्का और हर्षित मुख रखता है,कठिनसे कठिन विपतियों में भी वह विचलित नहीं होता क्योंकि साक्षी भाव वाला मनुष्य सदा उन मुसीबतों को नाटक का अंग मानकर अचल,अडिग बना रहता है,जैसे यदि आपका कोई अपमान कर रहा है और आप उसके साक्षी भाव से देखें कि अपमान करने वाला अज्ञानी है,जिसका दुःखत परिणाम उसे भुगतना पड़ता है,तब तो वह अपमान आपको पहले तीर की तरह चुभता था,वह आपको जरासा भी स्पर्श नहीं कर पायेगा,आत्मा कमल पुष्प के अदृश्य मान-अपमान,निंदा-स्तुति,सुख-दुःख से सदा ऊपर रह कर आनंदित करेगी।

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