श्री रघुनाथ कीर्ति में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा दस दिवसीय शिविर कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं कई विश्वविद्यालयों के शोध और पीजी छात्र
प्रदीप कुमार देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। भारतीय शिक्षण मंडल का दस दिवसीय शिविर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालया श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आरंभ हो गया। दस दिवसीय इस शिविर में विभिन्न विश्वविद्यालयों के लगभग 85 शोधार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं। ’अनुभूति शिविर’नामक इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य मानवमूल्यों का विकास,नैतिक-बौद्धिक विकास और आत्मसाक्षात्कार है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा मंडल दिल्ली प्रांत के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय के पूर्व निदेशक और राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद के निदेशक प्रो.रविप्रकाश टेकचंदानी ने किया। स्वामी विवेकानंद के दर्शन को अपनाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि आज के भारत को बौद्धिक योद्धाओं की आवश्यकता है। हर युवा का सपना समृद्ध और विकसित का सपना होना चाहिए। हमें अधीर नहीं वीर की भावना रखनी होगी। सकारात्मक सोच किसी भी सफलता का बीजमंत्र होता है। देव और दानव होना सोच की ही उपज है। हम कई बार शब्दों का गलत अर्थ ग्रहण कर विवादों को जन्म देते हैं,जो हमारे लिए ही नुकसानदायक होते हैं। हमें शब्दों के अभिधा ही नहीं लक्ष्यार्थ भी लेना चाहिए,क्योंकि शब्द भावों का प्रतिबिंबन करते हैं। उन्होंने कहा कि शब्दों के कारण हमारे इतिहास में कितनी घटनाएं हुईं,इस पर विचार कर ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। शब्द विध्वंस भी करते हैं और रचना भी करते हैं। शब्दों का अर्थ संकुचन नहीं,अर्थ विस्तार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन कठिनता से सरलता की ओर जाना चाहिए। प्रो.टेकचंदानी ने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल तत्त्व वसुधैव कुटुंबकम और सर्वेभवंतु सुखिनःहै। भारतीय दर्शन में धर्म का अर्थ बहुत विस्तृत है।’परहित’इसकी आत्मा है। इसलिए तुलसीदास ने’परहित सरिस धरम नहिं भाई’कहा है। हमारा धर्म पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर ले जाने की गारंटी देता है। उन्होंने कहा कि एकांत में रहने के अलग लाभ हैं और समूह में रहने के अलग लाभ हैं। दस दिवसीय इस शिविर में युवा शोधार्थी एक-दूसरे के विचारों,भाषाओं,संस्कृतियों को जानेंगे,यह भारत की एकता के लिहाज से आवश्यक भी है। उन्होंने कहा कि मन में उठे प्रश्नों का समाधान आवश्यक है। चाहे वह कक्षा हो या समाज। इस शिविर में प्रतिभागियों के अनेक प्रश्नों का समाधान होगा और अनेक जिज्ञासाएं शांत होंगी। अध्यक्षता करते हुए श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि हमें जीवन में अपने हिसाब से अपनी सीमाएं बांधनी नहीं चाहिए,बल्कि व्यक्तित्व विकास तथा समाज और राष्ट्रहित में उनका विस्तार करना चाहिए। आलस्य और लापरवाही से दूर रहकर हम अपनी सुदृढ़ और प्रेरणादायी राह निर्मित कर सकते हैं। प्रो.सुब्रह्मण्यम ने श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के वर्षों पुराने अतीत और इस परिसर के निर्माण में सहयोग देने वाले विद्वानों की चर्चा करते हुए कहा कि ऊर्जा सही दिशा में लगे तो परिणाम सकारात्मक ही होते हैं, भले ही वे कभी भी दिखायी दें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पलायन के कई कारण हैं। इनमें शिक्षा भी एक है। श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर संस्कृत शिक्षा विशेतः उच्च शिक्षा के लिए होने वाले पलायन पर रोक लगाने में कुछ सीमा तक सफल हुआ है। धन्यवाद ज्ञापन वर्ग प्रमुख डॉ.धर्मेंद्र नाथ तिवारी और संचालन डॉ.अंजलि कायस्थ ने किया। ध्येय श्लोक अनिरुद्ध और ध्येय वाक्य प्रियंका त्यागी ने प्रस्तुत किया। भारतीय शिक्षण मंडल के दिल्ली प्रांत संगठन मंत्री राजीव ने एकल गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के आरंभ में परिसर निदेशक प्रो.सुब्रह्मण्यम ने प्रो.टेकचंदानी और डॉ.तिवारी को सम्मानित किया। इस अवसर पर डॉ.धर्मेंद्र नाथ तिवारी ने प्रो.टेकचंदानी और प्रो.सुब्रह्मण्यम को अपनी पुस्तकें भेंट की। डॉ.तिवारी ने बताया कि शिविर में दसों दिन अलग-अलग क्षेत्रों की विभिन्न हस्तियां व्याख्यान देंगी। शिविर की थीम,आत्मवत् सर्वभूतेषु’ है। शिविर में दिल्ली विश्वविद्यालय,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,इंद्रप्रस्त विश्वविद्यालय,पंजाब विश्वविद्यालय,आईटी दिल्ली इत्यादि संस्थानों के शोधार्थी और स्नातकोत्तर छात्र प्रतिभाग कर रहे हैं। इस अवसर पर आशुतोष,चंदन,डॉ.ब्रह्मानंद मिश्र,डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल,डॉ.सूर्यमणि भंडारी,डॉ.सुधांशु वर्मा,डॉ.शैलेंद्र प्रसाद उनियाल आदि उपस्थित थे।