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दीपावली के पुनीत त्योहार पर मण्डलीय नशा उन्मूलन प्रभारी चमोला ने आम जनमानस से नशा न करने की अपील की

प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल। गढ़वाल मंडलीय नशा उन्मूलन प्रभारी अखिलेश चंद्र चमोला ने दीपावली के शुभ अवसर पर आम जन मानस से नशा न करने की अपील की। दीपावली का इतिहास बताते हुए मण्डलीय नशा उन्मूलन प्रभारी अखिलेश चन्द्र चमोला ने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति अपने आप में प्रभावकारी व विशिष्ट है। जिसमें त्योहारों की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। हर त्योहार में वैज्ञानिकता के समावेश के भाव साथ काई न कोई सीख देखने को मिलती है।
दीपावली दीपों का त्योहार है। जो हमें असत से सत की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की अद्भुत प्रेरणा देता है। दीपावली 500 ईसा पूर्व की मोहन जोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की मूर्ति मिली जिसमें मातृ देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं। राक्षसों का वध करने के लिए मां दुर्गा ते ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का बध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध शान्त नहीं हुआ तब भगवान शंकर स्वयं मां काली के चरणों में लेट गये भगवान शिव का सानिध्य पाकर मां काली का क्रोध शान्त हुआ। इसी की याद में मां काली के शान्त रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरूआत हुई। इसी पर्व के दिन सम्पूर्ण तामसिक विषय वासनाओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अघोर रात्रि में मां काली की पूजा की जाती है। श्रीकृष्ण भगवान ने अत्याचारी नरकासुर का बध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुल वासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी। त्रेता युग में भगवान राम चौदह वर्ष बनवास भोगकर राजा रावण का बध करके वापस अयोध्या लौटे तब उनके स्वागत में चारों ओर दीपक जलाकर खुशियां मनाई गई। चमोला ने बताया कि इस पवित्र त्योहार का गौरव मय इतिहास रहा है। इसकी सार्थकता अपने अन्दर से खुशियां मनाने में है। न कि किसी मादक पदार्थो का सेवन करने में है। जीवन में खुशियां अच्छे कार्यों को करने से मिलती है। हमें इस खुशियों के त्योहर पर किसी भी स्थिति में नशे का सेवन नहीं करना चाहिए। नशे से सारी खुशियां काफूर हो जाती है। नशा जीवन का सम्पूर्ण उत्साह समाप्त कर देता है।जिसके फलस्वरुप परिवार में लडाई वैर वैमनस्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस दिन हमें जीवन में कभी नशा न करने का संकल्प लेना चाहिए। हमारे राज्य उत्तराखंड को हिमवन्त प्रदेश,ऋषि मुनियों की तपों भूमि देवभूमि के नाम से जाना जाता है। इस देवभूमि की सार्थकता तभी है जव हम नशा मुक्त,खुशहाल उत्तराखण्ड बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दें।

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